Tuesday, August 10, 2010

आशा समुद्र के समान

आशा समुद्र के समान
जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं तब आयु रूपी नदी दिनोंदिन बढ़ती जाती है।

संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं।
मैं ईश्वर से डरता हूं। ईश्वर के बाद मुख्यत: उससे डरता हूं जो ईश्वर से नहीं डरता।
आनंद ही एक ऐसी वस्तु है जो आपके पास न होने पर आप दूसरों को बिना किसी असुविधा के दे सकते हैं।

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